गुलदार के हमले में ग्रामीण की मौत, वन विभाग की लापरवाही पर उठे गंभीर सवाल, मुआवजा भी नहीं मिला

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पौड़ी: पौड़ी जिले के सिरोली-पिपली मार्ग पर हाल ही में एक दर्दनाक घटना में शाम करीब 7:00 बजे एक व्यक्ति पर गुलदार ने हमला कर उसकी जान ले ली। यह घटना केवल एक मानव-वन्यजीव संघर्ष नहीं, बल्कि विभागीय लापरवाही का आईना है। घटना की जानकारी मिलते ही वन विभाग के अधिकारी मौके पर तो पहुंचे, लेकिन इसके बाद से जो रवैया सामने आया है, वह चौंकाने वाला है।

सरकारी नियमों के अनुसार, गुलदार के हमले में मृतक के परिजनों को तत्कालिक रूप से 30% अंतरिम मुआवजा दिया जाना चाहिए था। समाचार पत्रों में “मुआवजा दे दिया गया” छप चुका है, लेकिन सच्चाई यह है कि पीड़ित परिवार को एक रुपया भी अब तक नहीं मिला है। इससे न सिर्फ वन विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगता है, बल्कि इस संवेदनहीनता ने पूरे गांव में रोष और डर का माहौल बना दिया है।

वन विभाग ने पिंजरा तो लगाया, लेकिन जिस स्तर की निगरानी और कार्रवाई अपेक्षित थी, वह अब तक नहीं हो पाई। ग्रामीणों की मांग है कि गुलदार को शूट करने के आदेश दिए जाएं, लेकिन विभाग इसे ‘रात की घटना’ बताकर पल्ला झाड़ रहा है, जबकि पटवारी की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से 7:00 बजे की घटना लिखी गई है। सवाल यह है कि जब 7:30 बजे तक उजाला रहता है, तो इसे रात की घटना बताकर क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है?

इस मुद्दे पर कांग्रेस प्रदेश सचिव कवींद्र ईष्टवाल ने तीखा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि वन विभाग गंभीर घटना के बावजूद गहरी नींद में है। अधिकारी मामले को बहुत हल्के में ले रहे हैं। यह वही रास्ता है जो 5-6 गांवों को जोड़ता है और यहां दोबारा हमला होना तय है। बावजूद इसके विभाग के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। ईष्टवाल ने यह भी आरोप लगाया कि पर्यटन मंत्री व क्षेत्रीय विधायक सतपाल महाराज इस दुख की घड़ी में नदारद हैं।

महाराज सिर्फ चुनाव के वक्त ही क्षेत्र में नजर आते हैं। आज जब गांव का बच्चा-बच्चा डरा हुआ है, तब उनकी कोई भूमिका नहीं दिख रही। ईष्टवाल ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो ग्रामीण वन विभाग के खिलाफ डीएफओ कार्यालय पर धरना प्रदर्शन करेंगे।

ये हैं मांगें

1. मृतक परिवार को तुरंत अंतरिम मुआवजा प्रदान किया जाए।

2. गुलदार को शूट करने या ट्रैंकुलाइज करने के निर्देश दिए जाएं।

3. क्षेत्र में निगरानी और पिंजरे की संख्या बढ़ाई जाए।

4. स्थानीय जनप्रतिनिधियों और वन अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए।

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