उत्तराखंड : जगी उम्मीद, संविदा और आउटसोर्स को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा आदेश

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) और आउटसोर्सिंग पर कार्यरत कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर राज्य सरकार को छह महीने के भीतर नियम बनाने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने इस संबंध में सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार को जल्द ही इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी।
यह आदेश देहरादून के स्टेट नर्सिंग कॉलेज में 15 वर्षों से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत मयंक कुमार जामिनी की याचिका पर आया है। याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्हें 2010 में लेक्चरर (अब असिस्टेंट प्रोफेसर) के पद पर संविदा के आधार पर नियुक्त किया गया था। वह पिछले 15 सालों से बिना किसी रुकावट के सेवा दे रहे हैं, लेकिन उन्हें न तो नियमित किया गया और न ही समान कार्य के लिए समान वेतन दिया गया।
हाल ही में, राज्य सरकार ने असिस्टेंट प्रोफेसर के 16 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया, जिसमें वह पद भी शामिल था जिस पर याचिकाकर्ता कार्यरत हैं। याचिकाकर्ता ने इसे नियम विरुद्ध बताते हुए कोर्ट में चुनौती दी। उनका कहना था कि इतने वर्षों की सेवा के बावजूद उन्हें न तो आयु सीमा में छूट दी गई और न ही अनुभव का कोई लाभ दिया गया।
राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि मुख्यमंत्री की घोषणा और कैबिनेट के फैसले के बाद, संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण पर विचार करने के लिए सात सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है। सरकार के इस रुख पर कोर्ट ने कहा कि जब सरकार खुद नियमितीकरण की प्रक्रिया में है, तो याचिकाकर्ता जैसे लंबे समय से कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि नए विज्ञापन में याचिकाकर्ता और उनके समान स्थिति वाले एक और कर्मचारी के पद को खाली रखा जाए। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया कि जब तक नियमितीकरण के नियम नहीं बन जाते, तब तक याचिकाकर्ता की सेवा यथावत जारी रहेगी। कोर्ट ने सरकार को छह माह का समय दिया है, जिसके बाद याचिकाकर्ता के नियमितीकरण पर निर्णय लिया जाएगा।