उत्तराखंड पेपर लीक: सरकार की जवाबदेही पर सवाल, चरम पर युवाओं का आक्रोश

देहरादून : उत्तराखंड में पेपर लीक का एक और मामला सामने आने से राज्य में हड़कंप मच गया है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) द्वारा 21 सितंबर 2025 को आयोजित स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा में हरिद्वार के बहादराबाद केंद्र से प्रश्न पत्र के तीन पेज लीक होने की घटना ने न केवल लाखों युवाओं के सपनों पर कुठाराघात किया है, बल्कि सरकार की कार्यप्रणाली और परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
पेपर लीक की घटना: क्या हुआ?
UKSSSC द्वारा आयोजित इस परीक्षा का प्रश्न पत्र शुरू होने के मात्र 35 मिनट बाद ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। बेरोजगार युवा संगठनों का दावा है कि उन्हें परीक्षा शुरू होने के आधे घंटे के भीतर ही पूरा प्रश्न पत्र प्राप्त हो गया था। इस घटना ने न केवल परीक्षा की निष्पक्षता को संदिग्ध बना दिया, बल्कि उन लाखों अभ्यर्थियों के भविष्य को खतरे में डाल दिया, जिन्होंने इस परीक्षा के लिए सालों तक मेहनत की थी।
पुलिस जांच में मुख्य आरोपी खालिद मलिक और उसकी बहन साबिया को गिरफ्तार किया गया। खालिद ने चार अलग-अलग केंद्रों से आवेदन किया था, जो UKSSSC के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। इसके अलावा, हरिद्वार के परीक्षा केंद्र के 18 में से तीन कमरों में जैमर न होने की बात सामने आई है, जिसने लीक की संभावना को और बढ़ा दिया।
सरकार की कार्रवाई: कितनी कारगर?
पेपर लीक के बाद सरकार ने त्वरित कार्रवाई का दावा करते हुए जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के परियोजना निदेशक केएन तिवारी को निलंबित कर दिया। वित्त सचिव दिलीप जावलकर के आदेश में कहा गया कि तिवारी को परीक्षा केंद्र में सुचिता बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन उनकी लापरवाही के कारण प्रश्न पत्र लीक हुआ। इसके साथ ही, सरकार ने हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में विशेष जांच दल (SIT) गठित किया है, जिसे एक महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश है।
हालांकि, ये कदम युवाओं के गुस्से को शांत करने और उनकी शंकाओं को दूर करने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। सरकार की कार्रवाइयों पर कई सवाल उठ रहे हैं:
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बार-बार पेपर लीक क्यों?
उत्तराखंड में यह कोई पहला मामला नहीं है। 2021 और 2022 में भी UKSSSC की परीक्षाओं में पेपर लीक के मामले सामने आए थे। सख्त नकल विरोधी कानून लागू होने के बावजूद ऐसी घटनाएं क्यों दोहराई जा रही हैं? क्या सरकार पहले के घोटालों से कोई सबक नहीं ले रही? -
सुरक्षा व्यवस्था में खामी
हरिद्वार के परीक्षा केंद्र में तीन कमरों में जैमर न होना एक गंभीर चूक है। क्या UKSSSC और सरकार ने केंद्रों की सुरक्षा व्यवस्था की जांच में लापरवाही बरती? 5G नेटवर्क को नियंत्रित करने में जैमर की असफलता क्यों रही? -
आवेदन प्रक्रिया में ढिलाई
खालिद जैसे अभ्यर्थी द्वारा चार केंद्रों से आवेदन करना नियमों की अवहेलना दर्शाता है। क्या UKSSSC के पास आवेदनों की जांच के लिए कोई मजबूत तंत्र नहीं है? -
जांच की निष्पक्षता
सरकार ने SIT गठित की है, लेकिन युवा संगठन और विपक्ष CBI जांच की मांग कर रहे हैं। क्या SIT की जांच पूरी तरह निष्पक्ष होगी, या यह पहले की तरह केवल खानापूर्ति बनकर रह जाएगी? -
बड़े माफियाओं पर नकेल क्यों नहीं?
विपक्षी नेता भुवन कापड़ी ने आरोप लगाया कि सरकार छोटे अपराधियों को पकड़ रही है, जबकि बड़े माफियाओं को संरक्षण मिल रहा है। क्या सरकार प्रभावशाली लोगों को बचाने की कोशिश कर रही है?
युवाओं का गुस्सा और सड़कों पर प्रदर्शन
पेपर लीक की घटना के बाद उत्तराखंड के युवा सड़कों पर उतर आए हैं। देहरादून और हरिद्वार में बेरोजगार संघ और छात्र संगठनों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए, जिसमें परीक्षा रद्द करने और CBI जांच की मांग जोर-शोर से उठाई गई। युवाओं का कहना है कि बार-बार होने वाले पेपर लीक उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कई अभ्यर्थियों ने इस परीक्षा के लिए सालों की मेहनत और आर्थिक संसाधन झोंक दिए थे, लेकिन इस घटना ने उनकी उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया।
सरकार कठघरे में
यह घटना मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। विपक्ष, खासकर कांग्रेस, ने सरकार पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस नेता माहरा ने कहा कि सख्त कानून के बावजूद माफिया बेखौफ हैं और सरकार प्रभावशाली लोगों को बचा रही है। 2022 में हुए पेपर लीक घोटाले में 41 लोग गिरफ्तार हुए थे, लेकिन क्या उससे कोई सबक लिया गया? अगर सरकार ने पहले की गलतियों से सीख ली होती, तो क्या आज युवाओं को फिर से सड़कों पर उतरना पड़ता?