उत्तराखंड पंचायत चुनाव : क्या दो-तीन तक टल जाएंगे चुनाव? एक्ट में संशोधन की तैयारी!

देहरादून: उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की सरगर्मी अब तेज़ होती जा रही है। राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची को अंतिम रूप देने की तैयारी कर ली है और इसी सप्ताह इसे ऑनलाइन अपलोड भी कर दिया जाएगा। इसको लेकर चुनाव आयोग और एनआईसी के अधिकारियों की अहम बैठक हुई, जिसमें पूरी प्रक्रिया पर अंतिम मुहर लगाई गई।
ओबीसी आरक्षण पर संशय, दो बच्चों का मामला भी अधर में
पंचायत चुनाव की तारीखों को लेकर तस्वीर अब भी धुंधली है। ओबीसी आरक्षण लागू करने को लेकर अब तक स्पष्टता नहीं है। इसके लिए सरकार को पंचायत एक्ट में संशोधन करना होगा। पंचायती राज विभाग अध्यादेश लाने की तैयारी में है, जिसका प्रस्ताव शासन स्तर पर तैयार हो रहा है। इसे कैबिनेट से मंजूरी दिलाकर अध्यादेश लाया जा सकता है।
एकल सदस्यीय समर्पित आयोग की रिपोर्ट
इसके तहत पंचायतों में ओबीसी आरक्षण एकल सदस्यीय समर्पित आयोग की रिपोर्ट के आधार पर लागू किया जाएगा। लेकिन, जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक चुनाव कराना संभव नहीं दिख रहा।
चुनाव दो-तीन तक टलने की संभावना
जैसे-जैसे कानूनी और आरक्षण संबंधी प्रक्रियाएं आगे बढ़ रही हैं, यह संकेत मिल रहा है कि पंचायत चुनाव दो या तीन माह तक के लिए टल सकते हैं। हालांकि, इस पर अभी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।
नौ जिलों में बैलेट पेपर तैयार
इस बीच निर्वाचन आयोग ने नौ जिलों में बैलेट पेपर छपवाकर भेज दिए हैं। केवल हरिद्वार में इस बार पंचायत चुनाव नहीं होंगे। बाकी जिलों के लिए प्रक्रिया जारी है।
पंचायत चुनाव में पहली बार ऑनलाइन हो रही मतदाता सूची
राज्य निर्वाचन आयोग ने इस बार चुनाव से पहले मतदाताओं को जागरूक करने के लिए कई प्रयास किए हैं। पहली बार हर पंचायत में मतदाता सूची पहुंचाई गई ताकि ग्रामीण समय रहते अपने नाम जांच सकें। इसके अलावा, एक विशेष अभियान चलाकर पंचायतों में मतदाता सूची का संशोधन भी कराया गया। अब आयोग इसे ऑनलाइन अपलोड कर रहा है, जिससे ग्रामीण अपने वोट की पुष्टि वेबसाइट पर कर सकेंगे। आयोग के सचिव राहुल गोयल ने जानकारी दी कि दो से तीन दिन में वेबसाइट पर मतदाता सूची उपलब्ध करा दी जाएगी। इससे पारदर्शिता और भागीदारी दोनों को बढ़ावा मिलेगा।
सरकार के फैसलों पर नजर
एक तरफ जहां आयोग तकनीकी और जनसहभागिता के स्तर पर नई मिसाल कायम करने की ओर बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर कानूनी अस्पष्टता और नीतिगत देरी के चलते चुनाव की घड़ी खिंचती जा रही है। अब निगाहें अध्यादेश और कैबिनेट के फैसले पर टिकी हैं। चुनाव की तिथियां तय होंगी या फिर और टलेंगी, यह आने वाले हफ्तों में साफ हो जाएगा।