17 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से शुरू हो 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या तक मनाया जाएगा श्राद्ध पक्ष। – आचार्य विकास जोशी नारायण ज्योतिष संस्थान।

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17 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से शुरू हो 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या तक मनाया जाएगा श्राद्ध पक्ष।

– आचार्य विकास जोशी

     (नारायण ज्योतिष संस्थान) 

 

हरिद्वार l

पितृ पक्ष के दिन पितरों को समर्पित होता है। इस दौरान पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने का विधान है। इसके अलावा पितृ पक्ष में दान का भी विशेष महत्व है। कहते हैं कि पितृ पक्ष में ब्राह्म भोज कराने, पितृ क्रिय कराने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हर साल पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होता है और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को समाप्त होते है।

श्राद्ध की प्रमुख तिथियां

• पितृ पक्ष प्रारंभ, पूर्णिमा का श्राद्ध- 17 सितंबर

• प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध (पितृपक्ष आरंभ)- 18 सितंबर

• द्वितीया तिथि का श्राद्ध- 19 सितंबर

• तृतीया तिथि का श्राद्ध- 20 सितंबर

• चतुर्थी तिथि का श्राद्ध- 21 सितंबर

• पंचमी तिथि का श्राद्ध- 22 सितंबर

• षष्ठी और सप्तमी तिथि का श्राद्ध- 23 सितंबर

• अष्टमी तिथि का श्राद्ध- 24 सितंबर

• नवमी तिथि का श्राद्ध- 25 सितंबर

• दशमी तिथि का श्राद्ध- 26 सितंबर

• एकादशी तिथि का श्राद्ध- 27 सितंबर

• द्वादशी तिथि का श्राद्ध- 29 सितंबर

• त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध- 30 सितंबर

• चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध- 1 अक्टूबर

• सर्व पितृ अमावस्या, पितृ पक्ष समाप्त- 2 अक्टूबर

किसी को श्राद्ध की तिथि ज्ञान नहीं होती है ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म करना चाहिए। ये पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है। इस दिन को सर्वपितृ श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं इस दिन श्राद्ध करने से भूले भटके सभी पूर्वजों का श्राद्ध एक साथ हो जाता है।

• जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए।

• विवाहित स्त्रियों के श्राद्ध के लिए नवमी तिथि बताई गई है।

• माता के श्राद्ध के लिए भी नवमी तिथि शुभ होती है।

• सन्यासी पितरों का श्राद्ध द्वादशी तिथि पर करना उचित होता है।

• अविवाहित जातकों का श्राद्ध पंचमी तिथि पर करना उत्तम होता है।

• सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध जरूर करना चाहिए इससे सभी पूर्वजों की आत्मा को शांति मिल जाती है।

श्राद्ध घर के बड़े बेटे को करना चाहिए। अगर बड़ा बेटा नहीं है तब छोटा बेटा या फिर बेटी का बेटा श्राद्ध कर सकता है।। श्राद्ध तर्पण परिवार एक होने पर अलग अलग न करे परिवार विच्छेद हो गया हो तो भी तर्पण बड़े बेटे को ही करना चाहिए अन्य सभी अपने घर मे ब्राह्मण भोजन करवा सकते है पितरो के निमित्त दान निकल सकते है बड़ा भाई तर्पण ना करता हो तो इस स्थिति मे अन्य तर्पण करे । श्राद्ध कर्म का लोप ना करे।

पिंड दान व गया श्राद्ध के बाद भी पितरो को श्राद्ध तिथि मे जलांजलि ओर तिलांजलि देनी चाहिए ।

विधि विधान से पितरों का तर्पण करने के बाद उनसे प्रार्थना करनी चाहिए और जाने अनजाने में हुई अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए। घर मे समृद्धि की कामना करनी चाहिए ।

दान समग्री-  गाय,भूमि,सोना,घी,वस्त्र,कालेतिल,गुड़,धान,

चाँदी,नमक, व अन्न का दान करना चाहिए

आचार्य विकास जोशी

नारायण ज्योतिष संस्थान।

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