दिल्ली छोड़ गांव लौटा बेटा: अरधेंदू बहुगुणा बना पहाड़ में बदलाव की मिसाल

पौड़ी गढ़वाल के खिर्सू ब्लॉक स्थित झाला गांव में अरधेंदू भूषण बहुगुणा नई उम्मीदों के साथ बदलाव की कहानी लिख रहे हैं। प्रसिद्ध गढ़वाली साहित्यकार अबोध बंधु बहुगुणा के बेटे अरधेंदू ने दिल्ली की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी को पीछे छोड़ अपने पुश्तैनी गांव में बसने का फैसला किया। आज वे यहां न केवल खेती कर रहे हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, जैविक उत्पादों और स्थानीय नस्ल के कुत्तों को बढ़ावा देने में भी जुटे हैं।
अरधेंदू भले ही खुद लेखक न हों, लेकिन अपने पिता की कही एक बात “उत्तराखंड स्वर्ग भूमि है” को जीवन का उद्देश्य बना लिया है। अपने खेतों में आम, देवदार और बांज जैसे पेड़ लगाने के साथ ही वे गांव में हरियाली लौटाने के प्रयास कर रहे हैं। दिल्ली में रॉटविलर डॉग ब्रीडिंग में पुरस्कार जीत चुके अरधेंदू अब पहाड़ की पारंपरिक तिब्बतीन मस्टिफ और भोटिया नस्ल को प्राथमिकता दे रहे हैं, जो न केवल मौसम के अनुकूल हैं बल्कि पशु सुरक्षा के लिहाज़ से भी उपयुक्त हैं।
उनका मानना है कि “गांवों का विकास सिर्फ योजनाओं से नहीं, ज़मीन पर की गई मेहनत से होता है।” वे हिमाचल की ग्रामीण नीतियों को उत्तराखंड के लिए प्रेरणा मानते हैं और सरकार से स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की मांग करते हैं। अरधेंदू सवाल उठाते हैं कि “अगर लोग शहरों में मेहनत कर सकते हैं, तो गांव में क्यों नहीं?”
हाल ही में उन्होंने अपने गांव झाला में एक छोटा सा होमस्टे शुरू किया है, जो प्रकृति, शांति और लोकजीवन का अनुभव लेने आने वालों के लिए एक आदर्श स्थान है। यह सिर्फ एक पर्यटक आवास नहीं, बल्कि उनके उस विचार की परिणति है जिसमें वे गांवों को आत्मनिर्भर और जीवंत बनाना चाहते हैं। अरधेंदू बहुगुणा जैसे लोग यह साबित कर रहे हैं कि अगर इरादा पक्का हो, तो पहाड़ों की ज़िंदगी सिर्फ कठिनाई नहीं, बल्कि एक सुनहरा अवसर भी बन सकती है।