चौबट्टाखाल विधानसभा सीट: 2027 के लिए अभी से नजर आ रही सक्रियता, खतरे में सतपाल महाराज की राजनीतिक विरासत

देहरादून: उत्तराखंड की चौबट्टाखाल विधानसभा सीट पर 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी अभी से जोर पकड़ चुकी है। वर्तमान विधायक और कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की राजनीतिक विरासत को लेकर आशंका बढ़ रही है, जबकि कांग्रेस में युवा नेतृत्व उभरने की कोशिश कर रहा है।
हाल के पंचायत चुनावों ने स्थानीय समीकरणों को बदल दिया है, जिससे दावेदारों की दौड़ और रोचक हो गई है।चौबट्टाखाल, पौड़ी गढ़वाल जिले की एक महत्वपूर्ण सीट है, जहां भाजपा का लंबे समय से दबदबा रहा है। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में सतपाल महाराज ने क्रमशः राजपाल सिंह बिष्ट (कांग्रेस) और केशर सिंह (कांग्रेस) को बड़े अंतर से हराया था।
सतपाल महाराज, जो आध्यात्मिक गुरु के रूप में भी प्रसिद्ध हैं, अपनी राजनीतिक विरासत को अपने बेटे को सौंपने की योजना बना रहे हैं। लेकिन, अगर भाजपा ने महिला नेत्री दीप्ति रावत को टिकट दे दिया, तो यह योजना धरी की धरी रह सकती है। दीप्ति रावत, जो भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री रह चुकी हैं, और वर्तमान में प्रदेश की महामंत्री हैं।
उन्होंने हाल ही में चौबट्टाखाल का दौरा किया, जिससे अटकलें तेज हो गईं। हालांकि, उन्होंने कहा कि वहां उनका घर है। अपने गांव जाना एक सामान्य दौरा है, हालांकि उन्होंने चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने को लेकर कोई साफ संदेश नहीं दिया। लेकिन, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह दौरा 2027 की रणनीति का हिस्सा हो सकता है!
दीप्ति रावत का राजनीतिक सफर लंबा है। 2007 में मात्र 25 वर्ष की आयु में उन्होंने तत्कालीन बीरोंखाल (अब चौबट्टाखाल) सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। बाद में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में उच्च शिक्षा उन्नयन समिति की उपाध्यक्ष रहीं। अगर वे मैदान में उतरती हैं, तो सतपाल महाराज के बेटे की दावेदारी पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं, क्योंकि भाजपा में महिलाओं को टिकट देने की नीति पार्टी को फायदा पहुंचा सकती है। यह स्थिति सतपाल महाराज की रणनीति को प्रभावित करेगी, जो पहले से ही बेटे सुयश रावत को राजनीतिक मंच पर स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
कांग्रेस की ओर से सबसे मजबूत दावेदार कवींद्र ईष्टवाल उभर रहे हैं। प्रदेश सचिव ईष्टवाल ने हाल के जिला पंचायत चुनाव में अपनी बहू को जीत दिलाई, जो उनकी स्थिति को मजबूत बनाती है। पंचायत चुनावों के बाद पूर्व ब्लॉक प्रमुख सुरेंद्र की हार ने कांग्रेस के अन्य दावेदारों को पीछे धकेल दिया है।
ईष्टवाल लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं और स्थानीय मुद्दों पर काम कर रहे हैं, जिससे वे पार्टी के लिए एक मजबूत चेहरा बन सकते हैं। वहीं, वरिष्ठ नेता हरक सिंह रावत और राजपाल सिंह बिष्ट की भी नजरें इस सीट पर हैं। राजपाल बिष्ट ने 2017 में सतपाल महाराज के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जबकि हरक सिंह रावत का राजनीतिक प्रभाव पूरे गढ़वाल क्षेत्र में है।
पंचायत चुनावों ने चौबट्टाखाल के समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है। जिला और क्षेत्र पंचायत स्तर पर कांग्रेस की जीत ने स्थानीय आधार मजबूत किया है, जबकि भाजपा के कुछ दावेदारों की हार ने पार्टी में असंतोष पैदा किया। विश्लेषकों का कहना है कि 2027 में विकास, पर्यटन और स्थानीय मुद्दे जैसे जल संरक्षण प्रमुख होंगे।
सतपाल महाराज की विरासत बनाम नई पीढ़ी की दावेदारी के बीच यह सीट भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है, जबकि कांग्रेस को ईष्टवाल जैसे युवा चेहरे से फायदा मिल सकता है। अगर भाजपा 2027 में दीप्ति रावत को उतारती है, तो महाराज की चिंता बढ़ सकी है। कुल मिलाकर, चौबट्टाखाल 2027 में उत्तराखंड की राजनीति का हॉटस्पॉट बनेगी। सबसे बड़ा संकट सतपाल महाराज की राजनीतिक विरासत पर मंडरा है।