प्रेरणा-अंशु का 39वां वार्षिकोत्सव बना लघु पत्रिका आंदोलन का राष्ट्रीय केंद्र

- दिनेशपुर, उत्तराखंड
पिछले 39 वर्षों से राष्ट्र और समाज के समग्र चिंतन को समर्पित मासिक वैचारिक-साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा-अंशु के 39वें वार्षिकोत्सव पर एक ऐतिहासिक पहल हुई। 10-11 मई को दिनेशपुर स्थित ऑडिटोरियम में दो दिवसीय राष्ट्रीय लघु पत्र-पत्रिका सम्मेलन का भव्य आयोजन हुआ, जिसमें देशभर से आए साहित्यकारों, संपादकों, रंगकर्मियों, शिक्षकों, छात्रों और आम नागरिकों ने भाग लिया। इस आयोजन का उद्देश्य था, साहित्य, लघु पत्रिका संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को बचाने में बच्चों की निर्णायक भूमिका तय करना।
रंगयात्रा से उद्घाटन
सम्मेलन की शुरुआत एक प्रतीकात्मक और प्रभावशाली रंगयात्रा से हुई, जिसे वरिष्ठ साहित्यकार हेतु भारद्वाज ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। बच्चों, छात्रों और संस्कृतिकर्मियों की इस यात्रा में पढ़ने-लिखने की संस्कृति को पुनर्स्थापित करने, नशा उन्मूलन, अमन-चैन और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर आधारित पोस्टर लेकर नगर परिक्रमा की गई। यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद, पुलिनबाबू और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण किया गया।
शहीदों को श्रद्धांजलि
सम्मेलन की शुरुआत में आतंकवाद और युद्ध में जान गंवाने वाले नागरिकों और सैनिकों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर देश की एकता और शांति का संकल्प दोहराया गया।
विचारों और संवाद की ज़रूरत
उद्घाटन सत्र में हेतु भारद्वाज, पंकज बिष्ट, अमित प्रकाश सिंह, अशोक गुप्त, त्रिपुरा से अभीक कुमार दे, कोलकाता विश्वविद्यालय के तन्मय वीर, काशीनाथ चटर्जी, रेणु बहन, डॉ. ऋचा पाठक, राजीव लोचन शाह समेत देशभर के साहित्यकार और संपादक उपस्थित रहे।
संपादक वीरेश कुमार सिंह ने सभी मेहमानों का स्वागत करते हुए इस कठिन समय में भी साहित्य और संस्कृति के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने के लिए आभार प्रकट किया।
हेतु भारद्वाज ने अपने संबोधन में कहा, “आज विचारधाराओं की खाइयां गहरी होती जा रही हैं। संवाद और जुड़ाव जरूरी है, खासकर बच्चों को साहित्य और सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ने के प्रयास बहुत ज़रूरी हैं।”
किताबों का विमोचन और बच्चों का नेतृत्व
इस मौके पर पलाश विश्वास की पुस्तक “पुलिन बाबू: विस्थापन का यथार्थ, पुनर्वास की लड़ाई” और रूपेश कुमार सिंह की चर्चित किताब “छिन्नमूल” के दूसरे संस्करण का विमोचन बच्चों ने किया। यह एक प्रतीकात्मक संदेश था कि अब नेतृत्व की बागडोर अगली पीढ़ी संभालेगी।
रचनात्मक कार्यशालाएं और सार्थक सत्र
दूसरे दिन बच्चों की रचनात्मक कार्यशाला आयोजित हुई, जिसका संचालन शालिनी सिंह, उदय किरौला, अनुभव राज और शिव कुमार यादव ने किया। इसके बाद सत्रों की श्रृंखला में आधी आबादी, विस्थापन और पुनर्वास, रंगकर्म और सिनेमा पर गहन चर्चाएं हुईं। मास्टर प्रताप सिंह मिशन पर केंद्रित सत्र में शिक्षा और ग्रामीण जागरूकता पर विचार रखे गए।
नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम
शाम को हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रंग और रचनात्मकता का मेल देखने को मिला। अंत में मशहूर रंगकर्मी लकी गुप्ऐ ने अपने चर्चित नाटक “मां, मुझे टैगोर बना दें” की भावपूर्ण प्रस्तुति दी — जिसने दर्शकों को गहराई से झकझोर दिया।
यह सम्मेलन सिर्फ एक वार्षिकोत्सव नहीं था, यह एक सांस्कृतिक आंदोलन की दस्तक थी, जिसमें बच्चों को साहित्य और समाज की विरासत थमाने की घोषणा की गई। लघु पत्र-पत्रिकाएं अब भी जिंदा हैं और शायद यही वे मशालें हैं जो अंधेरे समय में रोशनी देंगी।