उत्तराखंड: हाईकोर्ट हत्या के मामले में आजीवन कारावास को कहा विचित्र, निचली अदालत ने सुनाई थी आजीवन कारावास की सजा

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नैनीताल:उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को दो अलग-अलग आपराधिक मामलों में महत्वपूर्ण फैसले सुनाए। पहले मामले में रुद्रपुर की निचली अदालत द्वारा हत्या के एक मामले में दी गई आजीवन कारावास की सजा को श्विचित्रश् करार देते हुए निलंबित कर दिया और आरोपी को जमानत दे दी। वहीं, दूसरे मामले में एक नाबालिग बच्ची के साथ सामूहिक दुराचार के दोषी की आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया।

हत्या के मामले में विचित्र फैसला
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने रुद्रपुर के तृतीय अपर जिला जज द्वारा 28 जुलाई 2023 को राकेश माली को हत्या के मामले में दी गई आजीवन कारावास की सजा को प्रथम दृष्टया श्विचित्रश् करार दिया। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि 29 जुलाई 2019 को राकेश माली का एक व्यक्ति से विवाद हुआ था, जिसकी 17 अगस्त 2019 को हृदयाघात से मृत्यु हो गई।

हाईकोर्ट ने पाया कि कथित हत्या का हथियार बरामद नहीं हुआ, अभियोजन पक्ष के दस्तावेजों में विरोधाभास है और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण हृदयाघात बताया गया। इसके अलावा, मुख्य गवाह की जिरह का अवसर आरोपी को नहीं दिया गया, जो निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों का उल्लंघन है। इन आधारों पर कोर्ट ने सजा को अपील के लंबित रहने तक निलंबित कर दिया और राकेश माली को 20 हजार रुपये के निजी मुचलके और समान राशि के एक जमानतदार पर तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई के लिए तिथि नियत की जाएगी।

गैंगरेप के दोषी की सजा में कमी
दूसरे मामले में, हाईकोर्ट ने 2015 में 9 साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुराचार और अपहरण के दोषी कन्हाई बैरागी की सजा को आंशिक रूप से कम कर दिया। रुद्रपुर की निचली अदालत ने 22 अगस्त 2015 को बैरागी को धारा 376डी (सामूहिक बलात्कार) के तहत आजीवन कारावास और 50 हजार रुपये जुर्माना, साथ ही धारा 366 (अपहरण) के तहत 10 साल की कैद और 20 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।

हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने सजा को अत्यधिक कठोर बताते हुए कमी की मांग की, हालांकि दोषसिद्धि को चुनौती नहीं दी। जस्टिस रविंद्र मैठाणी की पीठ ने पीड़िता, उसके चाचा और मां के बयानों के साथ मेडिकल रिपोर्ट को विश्वसनीय पाया। अदालत ने माना कि अपराध जघन्य है, लेकिन आरोपी की उम्र (घटना के समय 18 साल, 10 दिन) और आपराधिक इतिहास की कमी को देखते हुए आजीवन कारावास अत्यधिक है।

इसलिए, धारा 376डी के तहत सजा को घटाकर 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया गया, जबकि धारा 366 की सजा और सभी जुर्माने यथावत रखे गए। कोर्ट ने निर्देश दिया कि जुर्माने की राशि पीड़िता को दी जाए। दोषी को तुरंत हिरासत में लेकर शेष सजा काटने के लिए जेल भेजने का आदेश दिया गया।

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