चौहान बनाम चौहान या तीसरा विकल्प?

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देहरादून : उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की हलचल अब अपने चरम पर है। इस शोरगुल के बीच देहरादून जिला पंचायत की एक सीट ने विशेष ध्यान खींचा है, जहां सियासी जंग अब केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच न रहकर दो राजनीतिक घरानों, मुन्ना सिंह चौहान और प्रीतम सिंह की प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी है।

मुकाबला सिर्फ दो परिवारों का?

फिलहाल, भाजपा की ओर से मधु चौहान और कांग्रेस की ओर से अभिषेक सिंह को संभावित दावेदार माना जा रहा है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी गर्म है कि क्या यह मुकाबला सिर्फ इन्हीं दो परिवारों तक सीमित रहेगा, या कोई तीसरा चेहरा भी उभरेगा?

देहरादून की राजनीति में जौनसार क्षेत्र से जुड़े कुछ प्रभावशाली चेहरे ऐसे भी हैं, जो पर्दे के पीछे से अपनी बिसात बिछा रहे हैं। ये वे नाम हैं जो सीधे सामने नहीं आते, लेकिन निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। माना जा रहा है कि ऐसे चेहरे भी अपने उम्मीदवारों को सामने लाकर चुनावी समीकरण को नया मोड़ दे सकते हैं।

पारिवारिक सियासी विरासत

यह सीट लंबे समय से चौहान बनाम चौहान प्रतिस्पर्धा की गवाह रही है। एक ओर हैं मधु चौहान, जो दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं और विकासनगर के विधायक मुन्ना सिंह चौहान की पत्नी हैं। दूसरी ओर हैं कांग्रेस के अनुभवी नेता प्रीतम सिंह, जो छह बार चकराता से विधायक रह चुके हैं। उन्होंने इस बार अपने बेटे अभिषेक सिंह को चुनावी रणभूमि में उतार कर एक नई पीढ़ी की राजनीति की शुरुआत कर दी है। इस लड़ाई को अब सिर्फ वर्तमान की नहीं, बल्कि राजनीतिक उत्तराधिकार की नींव के रूप में भी देखा जा रहा है।

पर्दे के पीछे से भी चल रहा है खेल

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस चुनाव के माध्यम से 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए भी ज़मीन तैयार की जा रही है। कई ऐसे लोग, जो आज नजर नहीं आ रहे, पर्दे के पीछे से रणनीति बना रहे हैं। ये “छिपे हुए खिलाड़ी” आने वाले समय में समीकरण को उलट-पलट सकते हैं।

पुराना अनुभव बनाम नई उम्मीद

प्रीतम सिंह के भाई चमन सिंह दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं। मधु चौहान ने भी दो बार यह पद संभाला है। अब प्रीतम सिंह अपने भाई की जगह बेटे को आगे कर रहे हैं, जबकि मधु चौहान एक बार फिर दावेदारी के लिए तैयार हैं। यह परंपरा बनाम परिवर्तन की सीधी लड़ाई बन चुकी है।

चुनावी समीकरण और जनता की समीक्षा

हालांकि पंचायत चुनाव पार्टी चिह्नों पर नहीं लड़े जाते, लेकिन हर कदम पर राजनीतिक रंग साफ दिखाई देता है। भाजपा मधु चौहान को महिला सशक्तिकरण और विकास कार्यों के नाम पर जनता के सामने पेश कर रही है। कांग्रेस की रणनीति पुराने जनाधार और परिवर्तन की उम्मीद के इर्द-गिर्द घूमती है। लेकिन, एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जनता अब केवल पहचान से नहीं, कामकाज से भी फैसला करेगी। दो बार अध्यक्ष रह चुकी मधु चौहान के कार्यकाल की समीक्षा भी जनता करेगी, और ये समीक्षा चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती है।

क्या है तीसरे विकल्प की तैयारी ?

बात सिर्फ साख और सत्ता की नहीं, विकल्प की भी है। कई लोग अब यह सवाल भी उठा रहे हैं, क्या देहरादून की राजनीति को दो ही परिवारों तक सीमित रखा जाना चाहिए? क्या कोई तीसरा विकल्प सामने आना चाहिए जो परंपरागत राजनीति को चुनौती दे सके?

चुनावी रण अभी बाकी है

देहरादून जिला पंचायत की यह सीट अब एक साधारण चुनावी मुकाबले से कहीं आगे बढ़ चुकी है। यह प्रतिष्ठा, प्रभाव, पीढ़ी और परिवर्तन का युद्ध है। भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज परिवारों की सीधी भिड़ंत के साथ-साथ पर्दे के पीछे से तीसरे मोर्चे की तैयारी ने इस चुनाव को और भी दिलचस्प बना दिया है। कुलमिलाकर देखा जाये तो अभी तस्वीर अधूरी है…लेकिन, रंग भरने शुरू हो चुके हैं।

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