श्री बांके बिहारी जी वृंदावन, साक्षात प्रभु हरी विष्णु जी से परिवार सहित आशीर्वाद लेने पहुंचे नेशनल 24×7 “सिर्फ देश की बात”न्यूज़ चैनल के क्रिएटिव व मार्केटिंग नेशनल हेड कुश कपूर संग धर्मपत्नी दीपा कपूर ,प्रभु हरी विष्णु जी के दिव्य दर्शन,दिव्य भोग व दिव्य आरती का सौभाग्य प्राप्त हुआ I प्रभु हरी विष्णु जी से माँगा सभी देशवासियो के लिए सुखी व समृद्ध खुशहाल जीवन का आशीर्वाद I

वृंदावन से कुश कपूर की विशेष रिपोर्ट
साईं काल में बांके बिहारी का दर्शन करने के लिए भक्तों को 5:30 बजे मंदिर पर उपस्थित होना होगा. पट खुलने के बाद भक्त बांके बिहारी के दर्शन कर सकेंगे और 8:30 बजे बांके बिहारी को शयन भोग लगाया जाएगा. इसके बाद 9:05 पर भक्त उनके दर्शन कर सकेंगे और 9:25 पर बांके बिहारी की शयन आरती की जाएगी उसके बाद पट बंद कर दिए जाएंगे.

श्री बांके बिहारी जी वृंदावन, साक्षात प्रभु हरी विष्णु जी से परिवार सहित आशीर्वाद लेने पहुंचे नेशनल 24×7 “सिर्फ देश की बात”न्यूज़ चैनल के क्रिएटिव व मार्केटिंग नेशनल हेड कुश कपूर संग धर्मपत्नी दीपा कपूर ,प्रभु हरी विष्णु जी के दिव्य दर्शन,दिव्य भोग व दिव्य आरती का सौभाग्य प्राप्त हुआ I प्रभु हरी विष्णु जी से माँगा सभी देशवासियो के लिए सुखी व समृद्ध खुशहाल जीवन का आशीर्वाद I
साथ में प्रियंका चड्ढा व प्रशांत गोस्वामी ने भी दिव्य दर्शन किये I
इसका सारा श्रेय श्री बांके बिहारी जी के तीर्थ पुरोहित श्री सत्य प्रकाश शर्मा जी,वृन्दावन को जाता है I

वृंदावन में प्रेम मंदिर, कृष्ण बलराम मंदिर, पागल बाबा का मंदिर कुछ ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां श्रद्धालुओं के लिए रुकने का अच्छा व्यवस्था किया गया है। इसके अलावा आपको वृंदावन में एक से एक होटल,धर्मशाला और सराय मिल जाएंगे, उनमें से कुछ ₹500 से भी कम में उपलब्ध है।

श्री बाँकेबिहारी जी का संक्षिप्त इतिहास यह है की
बांके बिहारी जी वृन्दावन, यह एक ऐसी पावन भूमि है, जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसा आख़िर कौन व्यक्ति होगा जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बाँकेबिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा। यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री राम जी के वंशजो के सामूहिक प्रयास से संवत १९२१ के लगभग किया गया।
मन्दिर निर्माण के शुरूआत में किसी दान-दाता का धन इसमें नहीं लगाया गया। श्रीहरिदास स्वामी विषय उदासीन वैष्णव थे। उनके भजन–कीर्तन से प्रसन्न हो निधिवन से श्री बाँकेबिहारीजी प्रकट हुये थे। स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1536 में भाद्रपद महिने के शुक्ल पक्ष में अष्टमी के दिन वृन्दावन के निकट राजपुर नामक गाँव में हूआ था। इनके आराध्यदेव श्याम–सलोनी सूरत बाले श्रीबाँकेबिहारी जी थे। इनके पिता का नाम गंगाधर एवं माता का नाम श्रीमती चित्रा देवी था। हरिदास जी, स्वामी आशुधीर देव जी के शिष्य थे। इन्हें देखते ही आशुधीर देवजी जान गये थे कि ये सखी ललिताजी के अवतार हैं तथा राधाष्टमी के दिन भक्ति प्रदायनी श्री राधा जी के मंगल–महोत्सव का दर्शन लाभ हेतु ही यहाँ पधारे है। हरिदासजी को रसनिधि सखी का अवतार माना गया है। ये बचपन से ही संसार से ऊबे रहते थे। किशोरावस्था में इन्होंने आशुधीर जी से युगल मन्त्र दीक्षा ली तथा यमुना समीप निकुंज में एकान्त स्थान पर जाकर ध्यान-मग्न रहने लगे। जब ये 25 वर्ष के हुए तब इन्होंने अपने गुरु जी से विरक्तावेष प्राप्त किया एवं संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओं का चिन्तन करने में रह गये। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदासजी को बिहारीजी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार मनोहर श्यामवर्ण छवि वाले श्रीविग्रह को धरा को गोद से बाहर निकाला गया। यही सुन्दर मूर्ति जग में श्रीबाँकेबिहारी जी के नाम से विख्यात हुई यह मूर्ति मार्गशीर्ष, शुक्ला के पंचमी तिथि को निकाला गया था। अतः प्राकट्य तिथि को हम विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मानते है।युगल किशोर सरकार की मूर्ति राधा कृष्ण की संयुक्त छवि या ऐकीकृत छवि के कारण बाँके बिहारी जी के छवि के मध्य ऐक अलौकिक प्रकाश की अनुभूति होती है,जो बाँके बिहारी जी में राधा तत्व का परिचायक है।

इसी कारण से प्रातः श्रीबिहारी जी की मंगला–आरती नहीं होती हैं। कारण–रात्रि में रास करके यहां बिहारी जी आते है। अतः प्रातः शयन में बाधा डालकर उनकी आरती करना अपराध हैं। स्वामी हरिदास जी के दर्शन प्राप्त करने के लिए अनेकों सम्राट यहाँ आते थे। एक बार दिल्ली के सम्राट अकबर, स्वामी जी के दर्शन हेतु यहाँ आये थे। ठाकुर जी के दर्शन प्रातः 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक एवं सायं 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक होते हैं। विशेष तिथि उपलक्ष्यानुसार समय के परिवर्तन कर दिया जाता हैं।
श्रीबाँकेबिहारी जी के दर्शन सम्बन्ध में अनेकों कहानियाँ प्रचलित हैं। जिनमें से एक तथा दो निम्नलिखित हैं– एक बार एक भक्तिमती ने अपने पति को बहुत अनुनय–विनय के पश्चात वृन्दावन जाने के लिए राजी किया। दोनों वृन्दावन आकर श्रीबाँकेबिहारी जी के दर्शन करने लगे। कुछ दिन श्रीबिहारी जी के दर्शन करने के पश्चात उसके पति ने जब स्वगृह वापस लौटने कि चेष्टा की तो भक्तिमति ने श्रीबिहारी जी दर्शन लाभ से वंचित होना पड़ेगा, ऐसा सोचकर वो रोने लगी। संसार बंधन के लिए स्वगृह जायेंगे, इसलिए वो श्रीबिहारी जी के निकट रोते–रोते प्रार्थना करने लगी कि– ‘हे प्रभु में घर जा रही हुँ, किन्तु तुम चिरकाल मेरे ही पास निवास करना, ऐसा प्रार्थना करने के पश्चात वे दोनों रेलवे स्टेशन की ओर घोड़ागाड़ी में बैठकर चल दिये। उस समय श्रीबाँकेविहारी जी एक गोप बालक का रूप धारण कर घोड़ागाड़ी के पीछे आकर उनको साथ लेकर ले जाने के लिये भक्तिमति से प्रार्थना करने लगे। इधर पुजारी ने मंदिर में ठाकुर जी को न देखकर उन्होंने भक्तिमति के प्रेमयुक्त घटना को जान लिया एवं तत्काल वे घोड़ा गाड़ी के पीछे दौड़े। गाड़ी में बालक रूपी श्रीबाँकेबिहारी जी से प्रार्थना करने लगे। दोनों में ऐसा वार्तालाप चलते समय वो बालक उनके मध्य से गायब हो गया। तब पुजारी जी मन्दिर लौटकर पुन श्रीबाँकेबिहारी जी के दर्शन करने लगे।
इधर भक्त तथा भक्तिमति श्रीबाँकेबिहारी जी की स्वयं कृपा जानकर दोनों ने संसार का गमन त्याग कर श्रीबाँकेबिहारी जी के चरणों में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। ऐसे ही अनेकों कारण से श्रीबाँकेबिहारी जी के झलक दर्शन अर्थात झाँकी दर्शन होते हैं।

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